Khatu Shyam Mandir / Temple, KhatuShyam Ji Sikar Rajasthan

Sati Narayani Mata

narayani mata

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नारायणी धाम (अलवर)

राजस्थान में प्राकृतिक सौन्दर्य से पूर्ण सुसज्जित अलवर ज़िले में स्थित है। यह धाम चारों ओर से ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरा जंगलों में है, जहां सेन समाज की कुलदेवी माता नारायणी विराजमान हैं। यहां पर प्राकृतिक जल की धारा फूट रही है, जो लगभग दो कि.मी. की दूरी पर जाकर खत्म हो जाती है। फर्श की दरारों से पानी स्वतः ही भूमि से निकल रहा है, जो कुण्ड में मात्र एक फीट के लगभग भरा रहता है। कुण्ड में एक चमत्कार नजर आता है। इसके अन्दर सिक्कों के होने का आभास होता है, परन्तु उनको पानी से बाहर निकालते ही वे पत्थर में परिवर्तित हो जाते हैं। गर्मियों में ठंडा व सर्दियों में गर्म जल आता है। यहां प्रत्येक वर्ष भाद्रपद सुदी 14 को रात्रि जागरण एवं पूर्णिमा को मेला लगता है एवं भण्डारा होता है। साथ ही लोक कलाकारों द्वारा अपनी कला का प्रदर्शन किया जाता है, जिसमें लाखों की संख्या में यात्री पद यात्राओं के माध्यम से एवं वाहनों से आते हैं।

कथा

मान्यता है कि सेन समाज की कुलदेवी माता नारायणी का विवाह हुआ व प्रथम बार उनके पति के साथ वे अपने ससुराल जा रही थीं। चूंकि उस समय आवागमन के साधन नहीं थे, इसलिए दोनों पैदल ही जा रहे थे। गर्मियों के दिन थे, इसीलिए उन्होंने जंगल में एक वट वृक्ष के नीचे विश्राम करने का विचार किया। जब वे विश्राम कर रहे थे, तभी अचानक एक सांप ने आकर उनके पति को ढंस लिया और वे वहीं मर गये। कहा जाता है कि जंगल सूना था और दोपहर का समय था। नारायणी माता बिलख-बिलख कर रोने लगीं। शाम के समय कुछ ग्वाल अपनी गायों को लेकर वहां से गुजरे तो नारायणी माता ने उनसे उनके पति के दाह संस्कार के लिए चिता बनाने को कहा। ग्वालों ने आसपास से लकड़ियाँ लाकर चिता तैयार की। मान्यता है कि उस समय सती प्रथा थी। इसीलिए अपने पति को साथ लेकर नारायणी माता भी उनके साथ चिता पर बैठ गईं।
अचानक चिता में आग प्रज्वलित हो गई, जिसे ग्वालों ने चमत्कार मान नारायणी माता से प्रार्थना की कि- “हे माता! हम आपको देवी रूप मानकर आपसे कुछ मांगना चाहते हैं।” चिता से आवाज़ आई कि- “जो मांगना है मांग लो।” उस समय अकाल पड़ा हुआ था। ग्वालों ने कहा कि- “हे माता! हमारे इस स्थान पर पानी की कमी है, जिससे हमारे जानवर मर रहे हैं। कृपा कर हम पर दया करें।” चिता से आवाज आई कि- “तुम में से एक व्यक्ति इस चिता से लकड़ी उठा कर भागो और पीछे मुड़कर मत देखना। जहां भी तुम पीछे मुड़कर देखोगे, पानी की धारा वहीं रुक जायेगी।” एक ग्वाला लकड़ी उठाकर भागा और भागते-भागते वह दो कोस के करीब पहुंच गया। उसके मन में शंका हुई कि कहीं देखूँ पानी आ रहा है या नहीं और जैसे ही उसने पीछे मुढ़कर देखा पानी वहीं रुक गया। आज उसी चिता वाले स्थान पर कुण्ड बना दिया गया है और उस कुण्ड से धारा के रूप में पानी दो कोस दूर जाकर समाप्त हो जाता है, जो एक चमत्कार है।

नारायणी धाम पहुंचने के लिए अलवर, दौसा, जयपुर से राजस्थान परिवहन निगम की बसें मिलती हैं।
रेलगाड़ी द्वारा जयपुर, सवाई माधोपुर, दौसा पहुंचकर नारायणी धाम पहुंचा जा सकता है।
नारायणी धाम से 7 कि.मी. पहले ही सरसा माता मंदिर है, जो पहाड़ों के बीच बना हुआ है व गुफ़ा के अन्दर माता विराजमान हैं। यहां ठहरने के लिए धर्मशाला है।

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