2023 में आने वाले एकादशी व्रत की तारीखें
एकादशी व्रत पुराणों के मुताबिक, एकादशी को हरी वासर यानी भगवान विष्णु का दिन कहा जाता है। विद्वानों का ‘कहना है कि एकादशी व्रत यज्ञ और वैदिक कर्म-कांड से भी ज्यादा फल देता है। पुराणों में कहा गया है कि इस एकादशी व्रत को करने से मिलने वाले पुण्य से पितरों को संतुष्टि मिलती है। स्कन्द पुराण में भी एकादशी व्रत का महत्व बताया गया है। इसको करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं।
दिनांक | त्यौहार |
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सोमवार, 02 जनवरी | पौष पुत्रदा एकादशी |
बुधवार, 18 जनवरी | षटतिला एकादशी |
बुधवार, 01 फरवरी | जया एकादशी |
गुरुवार, 16 फरवरी | विजया एकादशी |
शुक्रवार, 03 मार्च | आमलकी एकादशी |
शनिवार, 18 मार्च | पापमोचिनी एकादशी |
शनिवार, 01 अप्रैल | कामदा एकादशी |
रविवार, 16 अप्रैल | वरुथिनी एकादशी |
सोमवार, 01 मई | मोहिनी एकादशी |
सोमवार, 15 मई | अपरा एकादशी |
बुधवार, 31 मई | निर्जला एकादशी |
बुधवार, 14 जून | योगिनी एकादशी |
गुरुवार, 29 जून | देवशयनी एकादशी |
गुरुवार, 13 जुलाई | कामिका एकादशी |
शनिवार, 29 जुलाई | पद्मिनी एकादशी |
शनिवार, 12 अगस्त | परम एकादशी |
रविवार, 27 अगस्त | श्रावण पुत्रदा एकादशी |
रविवार, 10 सितंबर | अजा एकादशी |
सोमवार, 25 सितंबर | परिवर्तिनी एकादशी |
मंगलवार, 10 अक्टूबर | इन्दिरा एकादशी |
बुधवार, 25 अक्टूबर | पापांकुशा एकादशी |
गुरुवार, 09 नवंबर | रमा एकादशी |
गुरुवार, 23 नवंबर | देवुत्थान एकादशी |
शुक्रवार, 08 दिसंबर | उत्पन्ना एकादशी |
शनिवार, 23 दिसंबर | मोक्षदा एकादशी |
एकादशी व्रत का नियम
एकादशी व्रत करने का नियम बहुत ही सख्त होता है जिसमें व्रत करने वाले को एकादशी तिथि के पहले सूर्यास्त से लेकर एकादशी के अगले सूर्योदय तक उपवास रखना पड़ता है। यह व्रत किसी भी लिंग या किसी भी आयु का व्यक्ति स्वेच्छा से रख सकता है।
एकादशी व्रत करने की चाह रखने वाले लोगों को दशमी (एकादशी से एक दिन पहले) के दिन से कुछ जरूरी नियमों को मानना पड़ता है। दशमी के दिन से ही श्रद्धालुओं को मांस-मछली, प्याज, दाल (मसूर की) और शहद जैसे खाद्य-पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। रात के समय भोग-विलास से दूर रहते हुए, पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
एकादशी के दिन सुबह दांत साफ़ करने के लिए लकड़ी का दातून इस्तेमाल न करें। इसकी जगह आप नींबू, जामुन या फिर आम के पत्तों को लेकर चबा लें और अपनी उँगली से कंठ को साफ कर लें। इस दिन वृक्ष से पत्ते तोड़ना भी वर्जित होता है इसीलिए आप स्वयं गिरे हुए पत्तों का इस्तेमाल करें और यदि आप पत्तों का इतज़ाम नहीं कर पा रहे तो आप सादे पानी से कुल्ला कर लें। स्नान आदि करने के बाद आप मंदिर में जाकर गीता का पाठ करें या फिर पंडितजी से गीता का पाठ सुनें। सच्चे मन से ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जप करें। भगवान विष्णु का स्मरण और उनकी प्रार्थना करें। इस दिन दान-धर्म की भी बहुत मान्यता है इसीलिए अपनी यथाशक्ति दान करें।
एकादशी के अगले दिन को द्वादशी के नाम से जाना जाता है। द्वादशी दशमी और बाक़ी दिनों की तरह ही आम दिन होता है। इस दिन सुबह जल्दी नहाकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और सामान्य भोजन को खाकर व्रत को पूरा करते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न और दक्षिणा आदि देने का रिवाज़ है। ध्यान रहे कि श्रद्धालु त्रयोदशी आने से पहले ही व्रत का पारण कर लें। इस दिन कोशिश करनी चाहिए कि एकादशी व्रत का नियम पालन करें और उसमें कोई चूक न हो।